गाडरवारा| आज बाल दिवस है इसके संबंध में सभी संगठनों राजनीतिक दलों के द्वारा बढ़-चढ़कर आयोजन किए जाएंगे समाज में बच्चों की महत्ता को स्वीकार किया जाएगा उनको भावी भारत का निर्माता बताया जाएगा उनके विकास के लिए सभी सरकारें प्रतिबद्ध हों समर्पित हो यह उद्गार व्यक्त किए जाएंगे गरीब बच्चों के साथ जाकर कुछ कहे जाने वाले सामाजिक संगठन क्लब समाज सुधारक और सेवक वहां जाकर उनको मीठी गोलियां मिठाई चॉकलेट पेन पेंसिल स्टेशनरी आदि बांटने का काम भी करेंगे
यह सब कुछ प्रदर्शन किया जाएगा राजनीति के लिए प्रचार के लिए अपने अहंकार को संतुष्ट करने के लिए दूसरे व्यक्ति या संगठन को तुलनात्मक रूप में कम सक्रिय बताने के लिए
क्या इससे भारत में बाल दिवस मनाना सार्थक हो जाएगा?
मैं समझता हूं यह काम बरसो बरसो से हो रहा है लेकिन बालकों और बालिकाओं की स्थिति में कोई आधारभूत परिवर्तन नहीं आया है
क्योंकि अभी भी भारत में 33 करोड़ लोग दरिद्र हैंऔर उनके बच्चे पोस्टिक आहार की बात तो छोड़िए दो समय भरपेट खाना भी नहीं खा सकते हैं उनके लिए दूध छाछ दही यह सब कुछ मिलना असंभव है
शिशु मृत्यु दर में भारत अभी भी अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाए हुए हैं प्रसव के समय महिलाएं किस तरह से परेशान होती हैं और चिकित्सा सुविधाओं के अभाव में इस दुनिया में आने के पहले ही बच्चा परलोक सिधार जाता है यह कटु वास्तविकता है
ऐसे में जरूरी है कि बच्चों के विकास के लिए बातें कम और काम ज्यादा किया जाए फेसबुक पर फोटो में कम और धरातल पर जाकर सकारात्मकता ज्यादा दिखाई जाए राजनीति के धंधेबाजों के साथ मिलकर यह कहना बंद कर दिया जाए कि हमने बाल दिवस पर यह या वह किया है
यह सब कुछ वर्तमान में प्रचार के लिए किया जा रहा है जो एक तरह से मेरी दृष्टि में सामाजिक अपराध है
क्योंकि यह सब कुछ करने के बाद भी कोई यह नहीं पूछता कि
---आजादी के 7 दशकों से अधिक समय गुजर जाने के बाद भी बालक बालिकाओं की स्थिति भारत में इतनी दयनीय क्यों है
--सरकार बाल नीति उनके संबंध में योजनाएं परियोजनाएं क्यों नहीं बनाती है
----बजट का कितना हिस्सा उनके लिए खर्च किया जाता है
---अत्यधिक गरीब और अत्यधिक धनी व्यक्तियों के बच्चों में सभी तरह से आधारभूत अंतर क्यों होता है
---उसको दूर करने के लिए प्रयास क्यों नहीं किया जाता है
---- सभी के लिए एक समान शिक्षा व्यवस्था निर्धारित क्यों नहीं की जाती है
---- आरटीई में जो अधिकार बच्चों के लिए दिए गए हैं उसकी पालना क्यों नहीं होती है
---बाल अधिकारों के महत्व को स्वीकार क्यों नहीं किया जाता है
सबसे महत्वपूर्ण यही है कि हर मामले में राजनीति नहीं की जाए और बालक बालिकाओं के लिए कुछ काम किया जाए
यह तभी हो सकता है जब इस मामले में राजनीति के धंधेवालों को महिमामंडित करने के स्थान पर उनसे स यह पूछा जाए कि
---आखिर आपने इनके लिए किया क्या है
--नहीं किया है तो क्यों नहीं किया है
--- सांसद और विधायक कोष से कितना पैसा अभी तक इनके संबंध में खर्च किया है
---आप अपने आय में से कितना पैसा इनके लिए खर्च करते हैं
यह प्रश्न पूछना आज की आवश्यकता है और नहीं पूछना लोकतंत्र के महत्व को स्वीकार करना है