मेडिकल दकानों का संचालन हो रहा है नियम बिरुद्ध मरीजों की जान के साथ हो रहा खिलवाड

मेडिकल दकानों का संचालन हो रहा है नियम बिरुद्ध मरीजों की जान के साथ हो रहा खिलवाड


कमल किशोर भार्गव राजधानी व्य/बनखेड़ी। जिले में कई जगह मेडिकल स्टोर्स बिना फार्मासिस्ट ओर नियम विरुद्ध संचालित हो रहे हैं, पिपरिया क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है, वही माना जाये तो स्वास्थ्य विभाग को भी इसकी भनक लंबे समय से है, फिर भी सब जानते हुए भी उदासीन रवैया अपनाए हुए हैं। पिपरिया में लगभग 30 मेडिकल स्टोर्स हैंकहने को तो मेडिकल स्टोर्स के संचालन के लिए डिग्री, डिलोमा, सर्टिफिकेट के आधार पर लाइसेंस जारी किए जाते हैं,


लेकिन हकीकत इससे परे है। ___नगर के कुछ मेडिकल व्यवसाई नियमों को ताक में रखते हुए मेडिकल दुकानों का संचालन कर रहे हैं। कई दुकानों का संचालन अबैध लाइसेंस, बगैर फार्मासिस्ट के शहर में कुछ मेडिकल दुकान का व्यवसाय किया जा रहा है। कई मेडिकलों में अपान व्यक्तियों को मेडिकल दुकान संभालने की जिम्मेदारी दे दी गई है, जिसे दवाइयों की जानकारी तक नहीं रहती हैइन मेडिकल स्टोर्स के खिलाफ ना तो ड्रग इंस्पेक्टर कोई कार्रवाई करते हैं, और ना ही स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी । गैर डिप्लोमा, डिग्रीधारी वह द्वारा मेडिकलों का संचालन करने से मरीजों की जान को खतरा रहता है। ऐसे में दवाइयों की सही जानकारी नहीं होने से मरीजों को गलत दवाइयां दी जा सकती है और मरीजों की जान पर बन सकती है। वहीं पिपरिया क्षेत्र में प्राइवेट डॉक्टरों द्वारा निजी मेडिकल दुकान संचालित की जा रही है, इन डॉक्टरों द्वारा जो दबाई लिखी जाती है, वह इनकी ही मेडिकल दुकानों पर मिलती है, और देखने बाली बात यह है कि इन डॉक्टरों द्वारा जिन शब्दों में दबाइए लिखी जाती है, वह केवल इनके द्वारा संचालित मेडिकल पर ही पड़ी राणा का नाका खतरा रहता हा जाती है। का उपयोग पिपरिया के कुछ मेडिकल दूसरे के नाम के सर्टिफिकेट द्वारा जारी लाइसेंस का उपयोग मेडिकल स्टोर्स संचालित करने के लिए कर रहे हैं। मासिक या सालाना के आधार पर लाइसेंस के लिए लेन-देन होता है। तीन से चार हजार रुपए महीने में लाइसेंस उपलब्ध हो जाता हैसूत्रों की माने तो नियम को ताक पर रखकर शहर के मेडिकलों द्वारा नियमों की धज्जियां उडाई जा रही टयको मेडिकल संचालको द्वारा नही दिए जाते बिलपिपरिया ही नहीं जिले के अधिकांश मेडिकल स्टोर्स संचालक दवाइयों देने पर ग्राहकों को दवाओं का बिल नहीं देते हैं । मेडिकल स्टोर्स पर दवाएं भी विक्रेता मुंह देखकर देते हैंकई बार ग्नामीण क्षेत्रों से आए लोगों को कंपनी की दवाओं को छोडकर उसी फॉर्मूले की लोकल दवाइयां थमा दी जाती है। इससे मेडिकल संचालकों को अच्छी बचत होती है। सूत्रों की माने तो बिल देने के एवज में मेडिकल संचालकों को दवाओं की कंपनी भी उल्लेखित करना पड़ती हैइसी वजह से बिल देने से बचते नजर आते हैं। ऐसे में मरीज डॉक्टरों के निजी प्रैक्टिस के समय उनके क्लीनिक या घर पर जाकर जांच करवाते हैं। बस यहीं से सस्ती दवाइयां महंगे दामों पर बेचने के धंधे की शुरुआत हो जाती है


इनका कहना मेडिकल दुकान संबंध में कई नियम है, परंतु देखा जाए तो यह नियम पूर्ण रूप से लागू नहीं हो सके है, हर मेडिकल पर फार्मेलिस्ट के साथ पक्के बिल देना अनिवार्य है। एस.सी साहू मुख्य डॉक्टर , सिविल हॉस्पिटल पिपरिया